कल १३ जुलाई २०१४ को परम पूज्या साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज की निश्रा में जवाहरनगर, जयपुर में अर्थ सहित स्नात्र पूजा महोत्सव का आयोजन किया गया. श्री श्वेताम्बर जैन संघ द्वारा महावीर साधना केंद्र में आयोजित इस पूजा में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया।
स्नात्र पूजा के सम्वन्ध में बताते हुए ज्योति कोठारी ने कहा की जैन धर्म की सभी पूजाओं में इस का अत्यंत विशिष्ट स्थान है एवं सभी पूजाओं से पहले इसे आवश्यक रूप से पढ़ाया जाता है परन्तु दुर्भाग्यवश आज लोग इसके महत्व को भूलने लगे हैं. उन्होंने आगे बताया की जब तीर्थंकर परमात्मा का जन्म होता है तब इन्द्रादिक देव मिलकर उन्हें मेरु पर्वत पर ले जाकर अभिषेक करते हैं इसी क्रिया का पुनरावर्तन ही स्नात्र पूजा है.
ज्योति कोठारी ने कहा की समवायांग सूत्र, चंदपण्णत्ति, सुरपण्णत्ति आदि आगमो में इसका वर्णन मिलता है एवं महा मनीषी पंडित देवचंद जी उपाध्याय ने तीन सौ वर्षों से भी अधिक पहले इन आगमो से इस पूजा की रचना की थी. यह भक्ति, तत्वज्ञान एवं संगीत की त्रिवेणी है. उन्होंने पूजा का भावपूर्ण अर्थ करते हुए इसके महत्त्व को समझाया जिससे उपस्थित जान समूह भाव विभोर हो उठा.
इस पूजा में छप्पन दिककुमारियों के रूप में स्थानीय पाठशाला की वालिकाओं ने मनमोहल प्रस्तुति दी. बालक गण इंद्रा के रूप में सुन्दर लग रहे थे. संघ की और से इन बालक बालिकाओं को पुरष्कृत भी किया गया.
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