इस अवसर पर जयपुर के जैन मनीषी एवं समारोह के विशिष्ट अतिथि ज्योति कोठारी ने आनंदघन जी के पदों के अध्यात्मिक एवं काव्यात्मक गुणों का विवेचन करते हुए उन्हें न सिर्फ अपने युग का वल्कि सर्वकालिक मानवता का संत बताया। उन्होंने कहा कि आनंदघन जी को लोग मर्मी या रहस्यवादी समजगते हैं परन्तु वे एकनिष्ठ आत्मसाधक एवं योगिराज थे. उनकी रचनाएं सम्प्रदायातीत एवं कालजयी है. आपके द्वारा लिखी गई चोवीस तीर्थकरों के भजन आनंदघन चौवीसी के नाम से विख्यात है और आज भी लोगों के कंठ में वसा हुआ है.
उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर गुजरात के तत्कालीन महापंडित उपाध्याय यशोविजय जी ने उनकी प्रशस्ति स्वरुप अष्टपदी कि रचना कि थी. वे निष्पृह संत थे एवं प्रायः वनो में निवास करते थे.डा इमरे बंगा से अपने सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए आनंदघन जी के पदों को विश्व के सामने लाने के प्रयासों के लिए उनका आभार व्यक्त किया।
यशवंत गोलेछा ने आनंदघनजी के पदों कि संगीतमय प्रस्तुति दी. प्रसिद्द हिंदी साहित्यकार गिरधर राठी ने "It's a city showman's show" कि समाचना प्रस्तुत करते हुए रीतिकालीन साहित्य कि व्याख्या कि. उन्होंने कबीरदास के पदों से तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। प्रोफ़ेसर इमरे बंगा ने बताया कि किस प्रकार हिंदी भाषा पर शोध करते हुए वे आनंदघन कि ओर आकर्षित हुए. उन्होंने पुस्तक पर अंतर्दृष्टि देने के लिए ज्योति कोठारी का, प्रकाशन के लिए पेंगुइन का एवं हंगरी सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक का आभार जताया। इसके बाद पुस्तक का विमोचन किया गया.
हंगरी सुचना व सांस्कृतिक केंद्र, दिल्ली के निदेशक टिबोर कोवाक ने सभी का आभार जताया एवं उनकी पत्नी ने सभी आगंतुकों को स्मृति चिन्ह प्रदान किया। जयपुर के ही उमराओ चद जरगढ़ द्वारा लिखित आनंदघन ग्रन्थावली कि एक प्रति ज्योति कोठरी ने टिबोर कोबाकस को भेंट दी.
हंगरी सुचना एवं संस्कृति केंद्र में हुआ आनंदघन बहत्तरि का विमोचन
आनंदघनजी पर पुस्तक का विमोचन हंगरी दूतावास में
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